MA Semester-1 Sociology paper-II - Perspectives on Indian Society - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2682
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

अध्याय - 5

दलितवादी दृष्टिकोण :
बी. आर. अम्बेडकर एवं डेविड हार्डीमन

(Subaltern Perspective :
B. R. Ambedkar and David Hardiman)

 

प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

डेविड हार्डिमैन का अधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य
(Subaltern Perspective of Hardiman)

हार्डिमैन उन विचारकों में से हैं जो दलितों का कल्याण और उत्थान चाहते हैं। हार्डिमैन ने अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तकों में पश्चिमी भारत के आदिवासियों की स्थिति, भू-स्वामियों एवं साहूकारों द्वारा किये जाने वाले उनके शोषण, शोषण के परिणामस्वरूप उनमें विकसित असन्तोष तथा आन्दोलन का विशद विश्लेषण किया है। उनका यह विश्लेषण दक्षिण गुजरात क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों पर आधारित है। उनके विश्लेषण को भारत में "कृषक मानसिकता" तथा कृषक आन्दोलनों को समझने में अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। हार्डिमैन जब 1972 ई. में ग्रामीण गुजरात में राष्ट्रवादी आन्दोलन पर अनुसन्धान करते समय जब दक्षिण गुजरात में थे तो उन्होंने आदिवासियों में होने वाले "देवी आन्दोलन" के बारे में सुना था। तभी से उनमें इस आन्दोलन के अध्ययन की रुचि जागृत हुई थी। जब वे पुनः 1980 ई. में भारत में आए तो उन्होंने आदिवासियों के इस आन्दोलन का अध्ययन करने का मन बना लिया था। यह आन्दोलन 1922 ई. में दक्षिण गुजरात के उन आदिवासियों ने प्रारम्भ किया जो अपने जीवन उत्थान हेतु तथा इसे बदलने हेतु प्रयासरत थे। चूँकि इस आन्दोलन की प्रेरणा उन्हें देवी से प्राप्त हुई थी, इसलिए वे अल्प समय में ही इस देवी शक्ति की प्रेरणा से एक झण्डे तले संगठित हो गये तथा स्थानीय भू-स्वामियों, साहूकारों तथा शराब के व्यापारियों के विरुद्ध संघर्ष करने लगे। यह आदिवासी आन्दोलन यद्यपि एक धार्मिक आन्दोलन के रूप में प्रारम्भ हुआ तथापि शीघ्र ही इसने आदिवासी प्रभुत्व हेतु संघर्ष का रूप ग्रहण कर लिया, ऐसे ही आन्दोलनों का उल्लेख भारत के अनेक अन्य हिस्सों में भी मिलता है परन्तु इन्हें आधुनिक भारतीय इतिहास के हाशिये पर रख दिया गया है।

हार्डिमैन का विचार है कि भारतीय इतिहास को समझने में ऐसे आन्दोलनों को हाशिये पर रखना एक बहुत बड़ी भूल है क्योंकि इस प्रकार के संघर्ष आदिवासियों में धार्मिकता, कृषक चेतना, ग्रामीण भारत में पूँजीवाद की ओर बढ़ते हुये कदम, सामन्तवादी एवं पूँजीवादी प्रभुत्व के विरुद्ध आदिवासियों के निरन्तर होते हुये संघर्षों तथा ग्रामीण स्तर पर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को समझने में अत्यन्त महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराते हैं। अपने अध्ययनों में हार्डिमैन ने आदिवासियों के इसी प्रकार के आन्दोलनों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है। हार्डिमैन ने निरन्तर पाँच वर्ष दक्षिण गुजरात में आदिवासियों के बीच रहकर ही इस आन्दोलन का अध्ययन किया। उन्होंने आन्दोलन करने वाले लोगों के लिए जनजाति शब्द के स्थान पर "आदिवासी" शब्द को ही उचित माना है। जब हार्डिमैन 'देवी' आन्दोलन का अध्ययन कर रहे . थे तो उनकी मुलाकात अधीनस्थ अध्ययन समूह के रंजीत गुहा एवं अन्य सदस्यों से हुई। इन्हीं से हार्डीमैन को इस आन्दोलन को अधीनस्थ परिप्रेक्ष्य द्वारा देखने की सतत् बौद्धिक प्रेरणा प्राप्त हुई। उनकी देवी आन्दोलन पर लिखी पुस्तक भारत के सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री आई. पी. देसाई को समर्पित है। आई.पी. देसाई ने उन्हें दक्षिण गुजरात क्षेत्र का काफी ज्ञान उपलब्ध कराया तथा आदिवासियों के बारे में लिखने में सहायता प्रदान की। 9 नवम्बर, 1922 को बोम्बे प्रेजीडेन्सी के सूरत जिले की पूर्वी सीमा पर रहने वाले लगभग 2,000 आदिवासी खानपुर नामक गाँव में एकत्रित हुए। छह भिन्न-भिन्न गाँवों में रहने वाले ये आदिवासी एक नई देवी, जो "सालाबाई" के नाम से जानी जाती थीं, के उपदेश सुनने के लिए एकत्रित हुए थे। ऐसा माना जाता था कि यह देवी पहाड़ों से आई थीं तथा आत्माओं के मुख के माध्यम से अपनी माँगें व्यक्त करती थीं। आदिवासी एक लकड़ी के तख्त पर बिखरे पत्तों पर बैठ जाते थे तथा अपने हाथों में लाल कपड़ा पकड़े रहते थे। थोड़ी देर में ही देवी के प्रभाव से ये लोग अपने सिरे को हिलाने लगते थे तथा शीर्घ ही अचेतन अवस्था में पहुँच जाते थे। इस अवस्था में वे देवी द्वारा दिए गए आदेश आदिवासियों को बताते थे। बताए जाने वाले कुछ आदेश निम्न प्रकार थे

• शराब एवं ताड़ी का सेवन बन्द करो,
• मीट एवं मछली का सेवन बन्द करो,
•एक स्वच्छ एवं सादा जीवन व्यतीत करो,
• पुरुषों को प्रतिदिन दो बार स्नान करना चाहिए,
• स्त्रियों को प्रतिदिन तीन बार स्नान करना चाहिए,
• पारसियों से कोई सम्बन्ध मत रखो।

जब उपर्युक्त उपदेश समाप्त हो जाते थे तथा घरों को वापस लौटने से पहले सामाजिक रूप से खाना खाते थे। आदिवासियों का विश्वास था कि देवी किसी भी जीवित पशु या प्राणी, बैल पुरुष या महिला में प्रेवश कर सकती है तथा उनके माध्यम से अपने आदेश उन तक पहुँचा सकती है। देवी आन्दोलन शीघ्र ही गुजरात जिले के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया तथा बहुत बड़ी संख्या में आदिवासी देवी के उपदेशों एवं आदेशों को सुनने आने लगे। कुछ समय पश्चात् आदिवासियों को कुछ नए आदेश दिए जाने लगे जैसे- गाँधी जी के नाम पर धनुष बाण रखना, खादी के कपड़े पहनना तथा राष्ट्रवादी स्कूलों में जाना। देवी ने उन्हें ईसाई न बनने की भी प्रेरणा दी। दारू और ताडी के स्थान पर चाय पीने, दारू एवं ताड़ी की दुकानों पर नौकरी न करने, शाकाहारी भोजन करने, जिन बर्तनों में खाने हेतु माँस, मछली या अण्डे बनाए जाते थे उन्हें नष्ट करने, मछली पकड़ने वाले जालों को जला देने, किसी भी जीव को खाने हेतु न मारकर अहिंसा का पालन करने, बैलों से कठोर काम न लेने, प्रतिदिन दो-तीन बार स्थान करने, स्नान करने के पश्चात् ही बनाने एवं खाने, कपड़ों एवं घरों को साफ रखने, बनियों से उधार न लेने एवं उनके घरों के बरामदों में भी प्रवेश न करने तथा पारसी साहूकारों से किसी भी प्रकार का सम्पर्क न रखने जैसे देवी आदेशों का आदिवासियों ने खुलकर समर्थन किया तथा इन्हें व्यवहार में अपनाया भी। शीघ्र ही इन उपदेशों के परिणाम भी सामने आने लगे। आदिवासियों ने साहूकारों से लागन देने हेतु कर्ज लेना बन्द करं दिया। उन्होंने संस्कारों पर होने वाले फिजूल खर्च भी बन्द कर दिए तथा शराब जैसी बुराइयों से भी अपने हाथ खींचने लगे। इससे उनके रहन-सहन में सुधार होने लगा जो उनके घरों की देखभाल तथा घरों में प्रयोग किए जाने वाले बर्तनों से स्पष्ट देखा जा सकता था। सादा जीवन व्यतीत करने, कुरीतियों एवं बुराइयों को छोड़ने तथा साहूकारों के चुंगल में न फँसने के कारण आदिवासियों के जीवन-स्तर में उल्लेखनीय सुधार हुआ।

हार्डिमैन ने आदिवासियों द्वारा अपनी स्थिति में किए जाने वाले सुधार हेतु प्रयासों को एम. एन. श्रीनिवास द्वारा प्रतिपादित संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के रूप में भी स्वीकार किया है। आदिवासियों द्वारा देवी आन्दोलन के दौरान सामूहिक रूप से माँसाहारी से शाकाहारी बनने, रोज दो-तीन बार स्नान कर पवित्रता सम्बन्धी नियमों का पालन करने के पीछे उनका लक्ष्य हिन्दू जातीय संस्तरण में एक छूत या स्वच्छ जाति का स्थान प्राप्त करना ही था। इस दृष्टि से यद्यपि यह " जनजाति में संस्कृतिकरण" की प्रक्रिया का एक अद्भुत उदाहरण है तथापि इसे इतनी सरल प्रक्रिया नहीं माना चाहिए। एस.सी. राय ने ओराँव जनजाति के अध्ययन में आर्य समाज द्वारा शुद्धि संस्कार के माध्यम से आदिवासियों को हिन्दू बनाने में मिली असफलता का उल्लेख किया है जो इस बात का द्योतक है कि केवल शाकाहारी बनने एवं पवित्रता सम्बन्धी नियमों का पालन करने से ही कोई आदिवासी समूह हिन्दू जाति संस्तरण में छूत या स्वच्छ जाति का स्तर प्राप्त नहीं कर सकता है। हार्डिमैन ने दक्षिण गुजरात में स्थित अनेक गाँवों का अध्ययन किया है जिनमें "सतवाव" नामक गाँव प्रमुख है। गाँव का यह नाम सात कुओं के इर्द-गिर्द झुण्डों में रहने वाले आदिवासियों का द्योतक है। गाँव में प्रमुख तौर से दो वर्ग हैं- एक उनका जो भू-स्वामी हैं और दूसरा उनका सो खेतीहर मजदूर हैं। मजदूर लोग भू-स्वामियों की जमीन पर नौकर की तरह कार्य करते हैं। उन्हीं र भू-स्वामियों की कृषि व्यवस्था निर्भर करती है। कार्य के बदले में भू-स्वामियों द्वारा मजदूरों को दिया जाने वाला प्रतिफल बहुत कम होता है। इससे वे इज्जत की जिन्दगी भी नहीं जी सकते। भू-स्वामियों द्वारा खेतीहर मजदूरों का शोषण काफी असहनीय होता था। इसके परिणामस्वरूप अनेक आदिवासी गाँव छोड़कर ही किसी अन्य स्थान की ओर प्रवास कर जाते थे। देवी आन्दोलन ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की उसके परिणामस्वरूपं उन्होंने प्रवास करने का रास्ता छोड़कर स्वयं बुराइयों एवं . फिजूलखर्ची को छोड़कर अपने जीवन स्तर को ऊँचा करने का रास्ता अपनाया। हाडिमैन का कहना है कि आदिवासियों में देवी आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वयं फिजूलखर्ची बन्द कर साहूकारों के चंगुल से बाहर निकलने का सफल प्रयास किया तथा अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाया। हार्डिमैन ने इस सन्दर्भ में राजनेताओं और प्रशासकों से भी सम्पर्क स्थापित किया और उन्हें दलितों को राहत देने की वकालत की।

हार्डिमैन का कहना है कि मेरा यह अध्ययन " अधीनस्थ अध्ययन समूह" द्वारा किए जाने वाले अध्ययनों की भाँति ही है क्योंकि इसका उद्देश्य आदिवासियों में विकसित होने वाली चेतना तथा स्वयं आदिवासियों द्वारा बिना विशिष्टजनों की सहायता से अपनी स्थिति में सुधार हेतु किए जाने वाले प्रयासों को समझना है। यद्यपि आदिवासियों में होने वाले देवी आन्दोलन की प्रकृति मूल रूप से धार्मिक थी, तथापि इसने आदिवासियों को एक होकर अपनी स्थिति में सुधार करने की प्रेरणा प्रदान की। दक्षिण गुजरात में हुआ देवी आन्दोलन 19वीं शताब्दी के अन्त में तथा 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत के अनेक अन्य भागों मे हुए आदिवासी आन्दोलनों से काफी समानताएँ लिए हुए हैं। उदाहरण - 1914-15 में छोटा नागपुर के ओराँवों में हुए "ताना भगत" आन्दोलन में भी दैवीय आदेशों के अनुसार आदिवासियों ने अनेक अन्धविश्वासों प्रथाओं एवं पशु बलि को छोड़ दिया, माँस खाना एवं शराब पीना छोड़ दिया, अपने खेतों पर हल चलाना बन्द कर दिया तथा गैर- आदिवासी भू-स्वामियों के खेतों पर कृषि श्रमिकों के रूप में कार्य करना बन्द कर दिया। देवी आन्दोलन की तरह यह भी बाद में एक राष्ट्रवादी आन्दोलन में परिवर्तित हो गया। 1921 ई. में छोटा नागपुर में ही भूमजी आदिवासियों में हुआ आन्दोलन भी देवी आन्दोलन की भाँति ही है। इस वर्ष भूमजी आदिवासियों में यह अफवाह फैल गई कि पृथ्वी पर एक राजा का जन्म हुआ है जो भगवान का अवतार है। उसने भूमजी आदिवासियों को शराब, मछली एवं माँस त्याग देने का आदेश दिया जिसके फलस्वरूप उन्होंने मुर्गी और बकरियों को रखना बन्द कर दिया। किस्मत से इस वर्ष फसल भी अच्छी हुई, जिससे आदिवासियों को यह विश्वास हो गया कि उनके द्वारा शराब, मछली, माँस का सेवन बन्द कर देना उनके लिए दैवीय शक्ति के कारण शुभ रहा है। तीन-चार वर्ष बाद लोगों ने इस राजा "गाँधी महात्मा का नाम देना प्रारम्भ कर दिया। हार्डिमैन के समाजवादी इतिहासकारों द्वारा आदिवासियों में पाई जाने वाली धार्मिकता की उपेक्षा करना उचित नहीं है क्योंकि इसका उनकी जागरुकता के स्तर पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। कृषकों एवं आदिवासियों में जिसे विचारधारा के परिणामस्वरूप उत्थान हेतु सामूहिक प्रयास हुए हैं वह मूल रूप से धार्मिक ही रही है। इन समुदायों में धर्म ही नैतिक एवं राजनीतिक आचार का आधार रहा है। आदिवासियों के धार्मिक विश्वासों एवं प्रथाओं में नवचेतना के परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों का लक्ष्य इनके सामाजिक स्तर को ऊँचा करना ही रहा है। हार्डिमैन ने विचार व्यक्त किया कि देवी आन्दोलन जैसे आदिवासी आन्दोलनों का अध्ययन उपनिवेशवादी युग में भारत के इतिहास के केन्द्रीय मुद्दों के बारे में हमारा ज्ञान काफी बढ़ा सकता है। इस प्रकार के आन्दोलनों का अध्ययन कृषक चेतना, उपनिवेशवाद से पूर्व समाज की संरचना, उपनिवेशवादी शासन एवं नियमों का समाज पर प्रभाव तथा नवीन कठोर सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध आदिवासियों के संघर्ष जैसे मुद्दों पर प्रकाश डाल सकता है तथा इन्हें समझने में सहायता प्रदान कर सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।
  2. प्रश्न- भारत में धार्मिक एकीकरण को समझाइये। भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले चार लक्षण बताइये?
  3. प्रश्न- भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले लक्षण बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं की विवेचना कीजिये जो इसमें अभिसरण. एवं एकीकरण लाने में सहायक हैं? प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये?
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  6. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  7. प्रश्न- आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  8. प्रश्न- समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  9. प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- परम्परागत भारतीय समाज के विशिष्ट लक्षण एवं संरूपण क्या हैं?
  11. प्रश्न- विवाह के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- पवित्रता और अपवित्रता के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की चर्चा कीजिये।
  13. प्रश्न- शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व स्पष्ट कीजिये? क्षेत्राधारित दृष्टिकोण का क्या महत्व है? शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  14. प्रश्न- शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  15. प्रश्न- इण्डोलॉजी से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।.
  16. प्रश्न- भारतीय विद्या अभिगम की सीमाएँ क्या हैं?
  17. प्रश्न- प्रतीकात्मक स्वरूपों के समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।
  19. प्रश्न- विद्या अभिगमन से क्या अभिप्राय है?
  20. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख 'विशेषतायें बतलाइये? प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये?
  21. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख विशेषतायें बताइये?
  22. प्रश्न- प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- प्रकार्यवाद से आप क्या समझते हैं? प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
  24. प्रश्न- प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  25. प्रश्न- दुर्खीम की प्रकार्यवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये? दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये? मर्टन की प्रकार्यवाद की अवधारणा को समझाइये? प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  26. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये?
  27. प्रश्न- प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  28. प्रश्न- "संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य" को एम. एन. श्रीनिवास के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  29. प्रश्न- डॉ. एस.सी. दुबे के अनुसार ग्रामीण अध्ययनों में महत्व को दर्शाइए?
  30. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में एस सी दुबे के विचारों को व्यक्त कीजिए?
  31. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के ग्रामीण अध्ययन की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  32. प्रश्न- एस.सी. दुबे का जीवन चित्रण प्रस्तुत कीजिये व उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  33. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के अनुसार वृहत परम्पराओं का अर्थ स्पष्ट कीजिए?
  34. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे द्वारा रचित परम्पराओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण व्यक्त कीजिए?
  35. प्रश्न- एस. सी. दुबे के शामीर पेट गाँव का परिचय दीजिए?
  36. प्रश्न- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- बृजराज चौहान (बी. आर. चौहान) के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए।
  38. प्रश्न- एम. एन श्रीनिवास के जीवन चित्रण को प्रस्तुत कीजिये।
  39. प्रश्न- बी.आर.चौहान की पुस्तक का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- "राणावतों की सादणी" ग्राम का परिचय दीजिये।
  41. प्रश्न- बृज राज चौहान का जीवन परिचय, योगदान ओर कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  42. प्रश्न- मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये? संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  43. प्रश्न- संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  44. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं? मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  45. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  46. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में क्या योगदान है?
  48. प्रश्न- ए. आर. देसाई द्वारा वर्णित राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्क्सवादी स्वरूप स्पष्ट करें।
  49. प्रश्न- डी. पी. मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  50. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- मुकर्जी ने परम्पराओं का विरोध क्यों किया?
  52. प्रश्न- परम्पराओं में कौन-कौन से निहित तत्त्व है?
  53. प्रश्न- परम्पराओं में परस्पर संघर्ष क्यों होता हैं?
  54. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक सांस्कृतिक समन्वय कैसे हुआ?
  55. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या है?
  56. प्रश्न- मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद की तुलना कीजिए।
  57. प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  58. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
  59. प्रश्न- रामकृष्ण मुखर्जी के विषय में संक्षेप में बताइए।
  60. प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।
  61. प्रश्न- सुरजीत सिन्हा का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ बताइये।
  62. प्रश्न- एन. के. बोस का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृत्तियाँ बताइये।
  63. प्रश्न- सभ्यतावादी परिप्रेक्ष्य में एन०के० बोस के विचारों का विवेचन कीजिए।
  64. प्रश्न- सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- भारतीय समाज को समझने में बी आर अम्बेडकर के "सबआल्टर्न" परिप्रेक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  67. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  68. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए शैक्षिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  69. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।
  70. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
  71. प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के माध्यम से अध्ययन किए गए देवी आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट करें।
  74. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
  75. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
  76. प्रश्न- अम्बेडकर के सामाजिक चिन्तन के मुख्य विषय को समझाइये।
  77. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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